[Team insider] पूरे राज्य भर में 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति और भाषा विवाद का मामला दिन-ब-दिन तूल पकड़ता जा रहा है। सोमवार को विभिन्न आदिवासी संगठनों ने भाषा, स्थानीय और नियोजन नीति की मांग को लेकर रांची के किशोरगंज चौक से लेकर बिरसा चौक तक शांतिपूर्ण तरीके से मानव श्रृंखला बनाई। मानव श्रृंखला बनाकर संगठनों ने अपना विरोध जताया।
गीताश्री उरांव ने सरकार पर निशाना साधा
पूर्व मंत्री और पूर्व कांग्रेस विधायक गीताश्री उरांव ने सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि अगर सभी गलत नीतियों को रद्द नहीं किया गया तो 14 मार्च को झारखंड के सभी जिलों के झारखंडी विधानसभा को घेरने का काम करेंगे।
पार्टी नहीं माटी के लिए जारी रहेगी लड़ाई
वहीं मानव श्रृंखला में शामिल स्थानीय कुशल मुंडा ने कहा कि भोजपुरी, महंगी, अंगिका झारखण्ड में पूरी तरह खत्म किया जाना चाहिए। झारखंड में 9 जनजाति भाषाएं हैं। उसे रहने देना चाहिए। भोजपुरी, मगही, अंगिका झारखंडियों को समझ में नहीं आता है। उसे हटाया जाना चाहिए। साथ ही मुख्यमंत्री ने अपने घोषणापत्र ने कहा था कि स्थानीय लोगों के लिए नीति बनाई जाएगी। ताकि स्थानीय लोगों को हक और अधिकार मिल सके। लेकिन अब तक 1932 का खतियान लागू नहीं की गई है। आने वाले दिनों में हेमंत सरकार को पीछे हटना पड़ेगा।नहीं तो यहां के लोग वोट नहीं देंगे।उन्होंने कहा कि यहां पार्टी की नहीं बल्कि माटी को लेकर लड़ाई छेड़ी गयी है। इसको लेकर सरकार द्वारा उचित निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए।
नेताओं ने भी बढ़ चढ़कर दिया बयान
झारखंड मुक्ति मोरचा की सरकार बनते ही 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति कि बात होने लगी। नेताओं ने भी बढ़ चढ़कर बयान दिया। झारखंड के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने साल 2020 में ही बयान दिया था कि झारखंड की स्थानीय नीति का आधार 1932 का खतियान होगा। वहीं सिल्ली के पूर्व विधायक अमित महतो ने भी इसे लेकर आंदोलन अब तेज कर दिया है। झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) की ओर से मैट्रिक और इंटर स्तर पर होने वाली प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए जनजातीय के साथ ही क्षेत्रीय भाषाओं को भी जगह दी गई।