खरसावां गोलीकांड के शहीदों श्रद्धांजलि देने के लिए केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा पहुंचे और शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के साथ पत्नी मीरा मुंडा, पुत्र डा अभिषेक मुंडा, जिलाध्यक्ष विजय महतो, वरीय नेता गणेश महाली, जेबी तुबिद ,पूर्व विधायक लक्ष्मण टुडू, बडकुंवर गगराई, मंगल सिंह सोय, उदय सिंह देव, राकेश सिंह, समेत बड़ी संख्या में भाजपा कार्यकर्ता मौजूद थे।
वहीं केंद्रीय मंत्री ने कहा कि 75 साल बीतने के बाद भी खरसावां गोलीकांड शहीदों के चिन्हित नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण है। राज्य सरकार को इस मुद्दे पर संवेदनशीलता दिखानी चाहिए। खरसावां गोलीकांड के शहीदों की वेदी पर संकल्प लेने की जरूरत है कि आदिवासी समाज पीछे ना छूटे यह बातें केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने खरसावां शहीद दिवस के मौके पर शहीद वेदी पर श्रद्धांजलि देते हुए कही।
आजाद भारत के इतिहास का सबसे भीषण गोलीकांड
राज्य के कोने- कोने से लोग खरसावां के ऐतिहासिक शहीद स्थल पर खरसावां गोलीकांड में मारे गए शहीदों को श्रद्धांजलि देने पहुंच रहे हैं। बता दें कि आज ही के दिन 1948 को खरसावां गोलीकांड की घटना हुई थी। आजाद भारत के इतिहास का सबसे भीषण गोलीकांड जिसमें मरने वालों की तादाद कितनी थी, इसका स्पष्ट आंकड़ा किसी के पास नहीं है। अर्जुन मुंडा ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में रोजगार, स्वास्थ्य, संवैधानिक अधिकार के प्रति जागरूक होकर आज आदिवासी समाज आगे बढ़े तभी खरसावां की पावन धरती पर शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि हम दे सकेंगे। उन्होंने कहा कि डिजिटल युग में नए क्षितिज का निर्माण हो रहा। जिसमें आदिम जनजाति का भी विकास हो रहा है।
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ओडिशा में विलय करने के विरोध हुई थी यह गोलीकांड
1947 में आजादी के बाद पूरा देश राज्यों के पुनर्गठन के दौर से गुजर रहा था। तभी अनौपचारिक तौर पर 14-15 दिसंबर को ही खरसावां व सरायकेला रियासतों का विलय ओडिशा राज्य में कर दिया गया था। औपचारिक तौर पर एक जनवरी को कार्यभार हस्तांतरण करने की तिथि मुकर्रर हुई थी। इस दौरान एक जनवरी, 1948 को आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने खरसावां व सरायकेला को ओडिशा में विलय करने के विरोध में खरसावां हाट मैदान में एक विशाल जनसभा का आह्वान किया था।
विभिन्न क्षेत्रों से जनसभा में हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे। एक जनवरी 1948 का दिन गुरुवार और साप्ताहिक बाजार-हाट का दिन था, इस कारण भीड़ काफी अधिक थी। लेकिन, किसी कारणवश जनसभा में जयपाल सिंह मुंडा नहीं पहुंच सके। रैली के मद्देनजर पर्याप्त संख्या में पुलिस बल भी तैनात थी। इसी दौरान पुलिस व जनसभा में पहुंचे लोगों में किसी बात को लेकर संघर्ष हो गया। तभी अचानक फायरिंग शुरू हो गई और पुलिस की गोलियों से सैकड़ों की संख्या में लोग शहीद हो गए।