जाति आधारित गणना को लेकर आज पटना हाईकोर्ट में सुनवाई हुई । जिसमें याचिकाकर्ता पटना हाई कोर्ट के वकील दीनू कुमार और पटना हाईकोर्ट में सरकार की तरफ से अधिवक्ता पीके शाही ने अपना -अपना पक्ष रखा। जिसके बाद कोर्ट ने सवाल किया कि सरकार ने कोई कानून क्यों नहीं बनाया इसमें सरकार की ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया। अब कल भी इस याचिका पर बहस जारी रहेगी।
याचिकाकर्ता की दलील
जाति आधारित गणना के खिलाफ याचिका करने वाले पटना हाई कोर्ट के वकील दीनू कुमार ने बताया कि बिहार सरकार ने 6 जून 2022 को यह फैसला लिया कि बिहार में जाति आधारित गणना कराई जाएगी और इकोनामिक सर्वे का भी प्रयास किया जाएगा। इसके लिए 500 करोड़ रूपया बिहार सरकार खर्च करेगी और जाति आधारित गणना के जो अपडेट होंगे वह सारे दल के लोगों को दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि जब हर 10 साल पर भारत सरकार जनगणना करती है तो फिर बिहार सरकार जाति आधारित गणना कैसे कर रही है।
संविधान में कहीं भी नहीं लिखा है कि बिहार सरकार जाति आधारित गणना करें। बिहार सरकार में कोई भी रूल रेगुलेशन नहीं बनाया। जाति आधारित गणना के लिए 500 करोड़ रुपया खर्च कर रही है लेकिन किस पर्पस के लिए कराया जा रहा है सरकार को पता नहीं है। इसलिए जाति आधारित गणना गलत है। उन्होंने आगे कहा कि सोसाइटी में यह बात हो रही है कि जातिवाद से ऊपर उठेंगे तब समाज का विकास होगा। लेकिन बिहार सरकार कास्ट की बात कर रही है। सरकार ने फैसला लिया है कास्ट रिलीजन और इनकम जो पूछा जा रहा है इन सभी डाटा को सार्वजनिक किया जाएगा। ऐसा करना राइट टू प्राइवेसी का उल्लंघन है। बिहार सरकार का जो फैसला है वह सेंसस एक्ट 1948 और कलेक्शन ऑफ स्टैटिसटिक्स एक्ट 2008 के विपरीत है।
सरकार का पक्ष
पटना हाईकोर्ट में सरकार का पक्ष रख रहे अधिवक्ता पीके शाही ने कहा कि विधानसभा में सभी दलों के लोगों ने जाति आधारित गणना मान्यता दी। राज्यपाल ने इसको लेकर अभिभाषण किया। इसके बाद ही ये फैसला लिया गया। क्योंकि यह जाति आधारित गणना लोगों के हित में है। हालांकि कोर्ट ने जब पूछा कि सरकार ने कोई कानून क्यों नहीं बनाया। तब सरकार का पक्ष रख रहे अधिवक्ता पीके शाही संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। अब कल भी इस मामले में कल भी सुनवाई होगी ।