देश भर में इस वक्त की सबसे बड़ी राजनीतिक जंग यही है कि 2024 में दिल्ली की गद्दी कौन संभालेगा। पीएम के रूप में नरेंद्र मोदी हैट्रिक लगाएंगे या फिर ब्रेक डाउन में मौका दूसरे किसी नेता को मिल सकता है। कांग्रेस की अपनी तैयारी है। तो दूसरी ओर नीतीश कुमार और नवीन पटनायक जैसे नेता भी हैं, जो नरेंद्र मोदी का विकल्प बन सकते हैं। इन दोनों के विकल्प की बात इसलिए हो रही है क्योंकि ये दोनों उसी रास्ते पर हैं, जिस पर चलते हुए 2014 में नरेंद्र मोदी पीएम बने थे। लेकिन बड़ी परेशानी नीतीश कुमार के साथ है। क्योंकि सीएम नीतीश ने हाल के दिनों में वो भी खो दिया है, जिसने उन्हें नीतीश कुमार होने के नए मायने गढ़े थे।
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तीन मुख्यमंत्रियों को मिली है पीएम की कुर्सी
देश में अभी तक बने प्रधानमंत्रियों में तीन ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं, जो किसी राज्य का सीएम बनने के बाद पीएम की कुर्सी तक पहुंचे। इसमें पहला नाम आता है वीपी सिंह का, जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। दूसरा नाम एचडी देवेगौड़ा का है, जो कर्नाटक के सीएम थे। तीसरा नाम नरेंद्र मोदी का है जो गुजरात के सीएम रहे हैं। लेकिन क्या पीएम की कुर्सी पर भाजपा के हारने की कंडीशन में अगला नाम किसी सीएम का होगा या फिर राहुल गांधी जैसे नेता का, यह चर्चा का विषय है।
नीतीश की हालत हो रही कमजोर!
वैसे तो नीतीश कुमार ने बतौर बिहार के सीएम अपनी राजनीतिक शख्सियत में बहुत कुछ जोड़ा है। बिहार की राजनीति करते हुए वे दिल्ली पर नजर भी रखते हैं। संभवत: आगे दिल्ली की राजनीति करना भी चाहते हैं। लेकिन मौजूदा हालत में नीतीश कुमार की हालत कमजोर दिखने लगी है। ऐसा इसलिए क्योंकि नीतीश कुमार अभी जिस हालत में, वो उनकी बेसिक इमेज से मेल नहीं खाती है। बिहार की सत्ता में उनके साझीदार राजद के तेजस्वी यादव, लालू यादव और उनका पूरा परिवार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा है। लेकिन नीतीश कुमार खामोश हैं। यह नीतीश कुमार की पॉलिटिकल स्टाइल नहीं रही है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ ही सत्ता में आए थे नीतीश
राजनीति में नीतीश कुमार तो बहुत पहले ही आ गए थे। लेकिन विधायक, सांसद और केंद्रीय मंत्री के रूप में उनकी पहचान सबसे जुदा नहीं थी। लेकिन बिहार में सीएम बनने के बाद नीतीश कुमार का कद अपेक्षा से अधिक बड़ा हुआ। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते हुए नीतीश कुमार बिहार की सत्ता में तो पहुंच गए। लेकिन 17 साल की सत्ता में अभी नीतीश कुमार की सरकार ही भ्रष्टाचार के आरोपों में घिर गई है। क्योंकि उनकी सरकार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव और उनके पूरे परिवार पर भ्रष्टाचार का आरोप है।
फंस गए नीतीश कुमार या फंसा दिए गए?
बिहार की राजनीति में अभी सबसे बड़ा सवाल यही है कि मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में नीतीश कुमार को पीएम पद तक पहुंचा देने वाली कोई लहर नहीं है। इसके बावजूद उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह समेत कुछ अन्य नेता नीतीश कुमार और जदयू को ऐसे प्रोजेक्ट करते हैं, जैसे मुख्य विपक्षी पार्टी जदयू ही है। जबकि असलियत यह है कि जदयू जिस बिहार में सत्ता में है, यहां भी पिछले 17 सालों में सबसे बुरे हालात में है। नीतीश कुमार को जानने वाले बताते हैं कि वे आरोपों को अधिक देर बर्दाश्त नहीं कर पाते। 2017 में उन्होंने ऐसे आरोपों के कारण ही महागठबंधन तोड़ दिया और वापस एनडीए में लौट आए। लेकिन 2022 में दुबारा लौट आना और अब फिर 2017 वाले हालात का बन जाना अलग ही राजनीतिक समीकरण बता रहा है।