राम मंदिर आंदलन में 1990 की रथ यात्रा का अहम स्थान है। 1980 में भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद से पार्टी ने राष्ट्रीय राजनीति में अपने पैर पसारने शुरू कर दिए थे। भाजपा ने तीन अहम मुद्दों को उठाया। इसमें सबसे पहला मुद्दा राम मंदिर का ही था। राम मंदिर के मुद्दे को लेकर लालकृष्ण आडवाणी काफी उत्सुक थे। उन्होंने वर्ष 1990 में रथ यात्रा की घोषणा कर दी। राम मंदिर का मुद्दा जोर पकड़ रहा था। जो लोग राम मंदिर का मुद्दा उठा रहे थे, उनके लिए भाजपा आवाज बन गई। लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकालने का तय किया। भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे को लेकर गंभीर दिखी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लेकर इससे जुड़ी तमाम इकाइयां एकजुट होने लगी। ऐसे में राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर पहली बार नरेंद्र मोदी की एंट्री हुई।
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भाजपा का संगठन नरेंद्र मोदी के प्रबंधन कौशल को देख चुका था। उनके इसी योग्यता को देखते हुए आडवाणी के रथयात्रा मैनेजमेंट का जिम्मा उन्हें दिया गया। इसकी दो वजहें सामने आई थीं। पहला तो उनका प्रबंधन कौशल था और दूसरा राष्ट्रीय मीडिया से बात करने के लिए वे अधिकृत थे। नेशनल मीडिया से बातचीत के क्रम में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह को रथ यात्रा रोकने की चुनौती दे दी थी। इसी दौरान उनके निर्भीकता और वाकपटुता की चर्चा होने लगी। आडवाणी रथ पर सवार हुए। देश में इसकी चर्चा शुरू हो गई। सोमनाथ से रथ चला तो कई राज्यों से होता हुआ वर्तमान झारखंड की कोयला नगरी धनबाद पहुंच गया।
लालू ने बनाया था रथ यात्रा के लिए अलग प्लान
धनबाद तब बिहार का हिस्सा था। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव किसी भी हाल में प्रदेश में रथ यात्रा नहीं होने देना चाहते थे। लालकृष्ण आडवाण को धनबाद पहुंचने देने से पहले रथ को रोकने की योजना बनी। लालू का प्लान रेडी था। आडवाणी को रथ यात्रा के दौरान सासाराम में गिरफ्तार करने की योजना बनाई गई। लेकिन, योजना लीक हो गई। इसके बाद धनबाद में आडवाणी को गिरफ्तार किया जाना था। अधिकारियों ने इसमें अड़ंगा डाल दिया। योजना फिर अधर में लटक गई। आडवाणी की रथ यात्रा का एक पड़ाव समस्तीपुर भी था। समस्तीपुर में लालू यादव हर हाल में आडवाणी को गिरफ्तार कराना चाहते थे। समस्तीपुर में लालू ने आडवाणी को हर हाल में गिरफ्तार कराने की योजना बनाई। लालकृष्ण आडवाणी समस्तीपुर के सर्किट हाउस में रुके थे। लालू यादव ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि उन्हें कहीं नहीं जाने दिया जाए।
ऐसे हुई थी आडवाणी की गिरफ्तारी
समस्तीपुर के सर्किट हाउस में लालकृष्ण आडवाणी के पहुंचने के बाद भारी संख्या में समर्थक उनसे मिलने पहुंच गए। आडवाणी भी उनसे मिल रहे थे। ऐसे में गिरफ्तारी पर बवाल का खतरा था। ऐसे में लालू ने अधिकारियों को इंतजार करने का निर्देश दिया। रात करीब दो बजे थे। सर्किट हाउस का फोन बजा। फोन आडवाणी के सहयोगी ने उठाया। दूसरी तरफ से एक पत्रकार ने सवाल किया, सर्किट हाउस में अभी कौन- कौन मौजूद हैं। पत्रकार को आडवाणी के सहयोगी ने बताया कि वे सो रहे हैं। समर्थक जा चुके हैं। पत्रकार कोई और नहीं बल्कि तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद यादव थे। वे जानना चाहते थे कि सर्किट हाउस की वर्तमान स्थिति क्या है?
लालू को जैसे ही वहां की स्थिति की जानकारी मिली। वे समझ गए कि यही मुफीद मौका है। आडवाणी को अभी गिरफ्तार किया गया तो अधिक बवाल नहीं होगा। सर्किट हाउस से लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया। सोमनाथ से 25 सितंबर को आडवाणी की रथ यात्रा शुरू हुई थी। 30 अक्टूबर को इसे अयोध्या पहुंचना था। हालांकि, 23 अक्टूबर को लालकृष्ण आडवाणी बिहार के समस्तीपु के गेस्ट हाउस से गिरफ्तार कर लिए गए।
गिर गई वीपी सिंह सरकार
लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी ने केंद्र की राजनीति में भूचाल ला दिया। सियासत गरमा गई। आरोपों का दौर शुरू हो गया। उस समय कांग्रेस विरोध के नाम पर एकजुट हुई तमाम पार्टियों के गठबंधन के नेता वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। इस गिरफ्तारी ने उनकी कुर्सी ही हिला दी। भारतीय जनता पार्टी ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इस कारण सरकार गिर गई। केंद्र की इस सत्ता के साझीदार लालू यादव भी उन पर भी केंद्र की सरकार के गिराने में साझीदार होने का आरोप लगा। इस प्रकार आडवाणी की रथ यात्रा को राम मंदिर मुद्दे का एक अहम पड़ाव माना जाता है। इस आंदोलन ने देश के सामने नरेंद्र मोदी को पहली बार लाया। उनके प्रबंधन कौशल को पार्टी ने बड़े स्तर पर देखा। यही, वजह रही कि 2001 में जब भाजपा के सामने गुजरात में पार्टी का चेहरा बदलने की चुनौती थी तो नरेंद्र मोदी के रूप में उनके पास एक मजबूत नेता मौजूद था।