अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि का आंदोलन काफी संघर्षों से भरा रहा है। वर्तमान पीढ़ी राम मंदिर के निर्माण को लेकर कई प्रकार की बात कर सकती है। लेकिन, इस मंदिर के संघर्षों में जुटने वाले लोगों के यह क्षण किसी सपने के सच होने से कम नहीं है। देश भर से रामभक्त जुटकर अपने अराध्या प्रभु रामलला की झलक पाने और कारसेवा के लिए लालायित रहते थे, लेकिन उन्हें इसकी अनुमति नहीं थी। करीब 500 सालों से जो तपस्या रामभक्त कर रहे थे, वह आजाद भारत में भी सफल नहीं हो पा रही थी। सितंबर 1990 में विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और शिवसेना की ओर से मंदिर के पुननिर्माण के लिए आंदोलन चलाया गया। स्थिति अस्थिर हो गई थी। लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन को धार देने के लिए रथयात्रा निकाली। वहीं, विश्व हिंदू परिषद ने लोगों को अयोध्या जुटाने की कोशिश शुरू की।
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30 अक्टूबर 1990 को आडवाणी की रथ यात्रा अयोध्या पहुंचनी थी। लेकिन, बिहार की लालू प्रसाद यादव ने 23 अक्टूबर 1990 को सीतामढ़ी में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया। आडवाणी का रथ रुक चुका था। लेकिन, विश्व हिंदू परिषद का अभियान जारी था। अयोध्या में रामभक्तों का जुटान जारी था। उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। मुलायम सरकार ने राज्य सरकार से सुरक्षा का वादा किया। बाबरी मस्जिद परिसर और अयोध्या शहर को पूरी तरह से बंद कर दिया गया था। मुलायम ने साफ कहा था कि अयोध्या में कोई भी पक्षी उड़ नहीं पाएगा।
21 अक्टूबर से शुरू हुआ था जुटान
भारतीय जनता पार्टी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी और विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल ने रामभक्तों को अयोध्या पहुंचने का आह्वान किया। देशभर में इसको लेकर हलचल तेज हो गई। एक तरफ मुलायम सरकार अयोध्या में परिंदा के पर न मारने देने का दावा कर रही थी। दूसरी तरफ रामभक्तों का जोश उबाल मार रहा था। प्रभु रामलला के मंदिर निर्माण का संकल्प हरेक रामभक्त ले रहे रहा था। पहली बार 21 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में रामभक्त कारसेवकों का जुटान हुआ। इसके बाद हर दिन उनकी संख्या बढ़ती गई। कारसेवा की तिथि पहले से 30 अक्टूबर निर्धारित थी।
अयोध्या में थी अभूतपूर्व सुरक्षा
कारसेवा के लिए एक्शन डे का निर्धारण 30 अक्टूर 1990 का था। इस दिन रामनगरी में सुरक्षा व्यवस्था अभूतपूर्व की गई थी। पुलिस ने अयोध्या के लिए सभी बस और ट्रेन सेवाओं पर रोक लगा दी थी। सीमाओं को सील कर दिया गया था। अधिकांश कारसेवक पैदल ही अयोध्या पहुंच रहे थे। कई कारसेवक तो सरयू की तेज धार को तैरकर पार गए। यूपी पुलिस ने विवादित ढांचे की करीब डेढ़ किलोमीटर की लंबी चढ़ाई पर बैरिकेडिंग लगा दी। शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया।
1990 की घटना की जांच करने वाले लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट कहती है कि अयोध्या में 30 अक्टूबर 1990 को 28 हजार यूपी पुलिस के सशस्त्र कॉन्स्टेबल को बहाल किया गया था। 40 हजार कारसेवकों को इस दिन अयोध्या पहुंचना था। केवल 10 हजार ही यहां पहुंच सके।
ऐसे शुरू हुई कारसेवा
अयोध्या में कारसेवा की शुरुआत 30 अक्टूबर सुबह 10 बजे से की गई। उस दिन सुबह 10 बजे महंत नृत्य गोपाल दास और विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल के नेतृत्व में कारसेवकों का बड़ा समूह विवादित स्थल की तरफ बढ़ा। पुलिस ने कारसेवकों को रोकने की कोशिश की। लेकिन, कारसेवक आगे बढ़ते रहे। इसी दौरान लाठी चार्ज का आदेश हुआ। कारसेवकों पर लाठियां बरसने लगी। एक लाठी अशोक सिंघल के सिर पर लगी। उनके सिर में चोट लगने की खबर कारसेवकों के बीच आग की तरफ फैली। वे उग्र हो गए। इसके बाद पुलिसकर्मियों और कारसेवकों के बीच भिड़ंत शुरू हो गई। करीब एक घंटे तक अयोध्या में युद्ध जैसी स्थिति बनी रही।
बाबरी पर फहराया भगवा
सुबह करीब 11 बजे पुलिस और कारसेवकों के बीच भिड़ंत के बीच एक साधु ने कॉन्स्टेबलों की एक बस को अपने नियंत्रण में ले लिया। इसमें कारसेवकों को गिरफ्तार कर रखा जा रहा था। पुलिस ने राम जन्मभूमि परिसर स्थित रोड पर बैरिकेडिंग कर रखी थी। साधु ने उसके ऊपर से बस को निकाल दिया। इससे अन्य लोगों के लिए पैदल चलने का रास्ता साफ हो गया। सुरक्षाकर्मी सतर्क हो गए। भारी सुरक्षा वाली जगह तक करीब 5000 कारसेवक पहुंच चुके थे। पुलिस उनका पीछा कर रही थी। कारसेवक दौड़ रहे थे। आगे बढ़ रहे थे। पुलिस ने गोली भी चलाई, लेकिन कारसेवक रुकने को तैयार नहीं थे। प्रत्यक्षदर्शियों का दावा है कि कारसेवकों की भीड़ से दो युवा निकले और बाबरी मस्जिद की दीवार पर चढ़ गए। इसके बाद वे गुंबद तक पहुंच गए।
दोनों भाइयों ने बाबरी मस्जिद के ऊपर भगवा झंडा फहराया। मुलायम सरकार ने जिस परिंदा के पर न मारने देने का दावा किया था, उन दावों की हवा महज 10 हजार कारसेवकों की भीड़ ने निकाल दी। अयोध्या में पहली कारसेवा ने कुछ ऐसा कर दिया था, जिसने कारसेवकों के आक्रोश को भड़का दिया। यह राम मंदिर आंदोलन की स्वतंत्र भारत में पहली बड़ी लड़ाई थी, जिसमें पुलिस और रामसेवक आमने- सामने आए थे।