देश के नए संसद भवन का उद्घाटन 28 मई को होने वाला है। इससे पहले इसको लेकर देश में जमकर विवाद हो रहा है। दरअसल पूरा विवाद प्रधानमन्त्री द्वारा संसद भवन के उद्घाटन करने को लेकर हो रहा है। 19 विपक्षी पार्टियों ने उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार करने का ऐलान किया है। विपक्षी पार्टियों का कहना है कि संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति के द्वारा करवाया जाना चाहिए। वही इन सब के बीच ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है। वकील सीआर जाया सुकीन ने सुप्रीम कोर्ट एमन एक याचिका दाखिल की है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री द्वारा संसद का उद्घाटन करना संविधान का उल्लंघन है, उद्घाटन में राष्ट्रपति को भी बुलाया जाना चाहिए।
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राष्ट्रपति के अपमान का आरोप
याचिकाकर्ता वकील सीआर जाया सुकीन ने अपनी याचिका को सही ठहराने के लिए आर्टिकल 79 का हवाला दिया है। उनका कहना है कि संसद का अर्थ दोनों सदनों और राष्ट्रपति से है। तीनों को मिलाकर ही संसद बनती है। राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है और उसके कस्टोडियन हैं। राष्ट्रपति को देश का प्रथम नागरिक माना जाता है, जो संसद के सत्र को आहूत करते हैं और उसका अवसान करते हैं। वही प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट को शपथ दिलाते हैं। किसी भी तरफ का विदेयक राष्ट्रपति के नाम पर ही मंजूर होता है। इसलिए संसद के उद्घाटन में राष्ट्रपति को ना बुलाना संविधान का उल्लंघन और उनका अपमान है।
18 मई को सेक्रेटरी जनरल ने जारी किया था बयान
बता दें कि 18 मई को लोकसभा के सेक्रेटरी जनरल की तरफ से बयान जारी कर बताया गया था कि नए संसद भवन क उद्घाटन प्रधानमंत्री करेंगे। इस बयान पर सवाल उठाते हुए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिकाकर्ता वकील सीआर जाया सुकीन ने कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को आमंत्रित नहीं किया गया है। भारत के राष्ट्रपति कुछ ताकतें रखते हैं और वह बहुत से जरूरी आयोजनों का हिस्सा होते हैं। राष्ट्रपति के तहत कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका और सैन्य से जुड़ी कई शक्तियां आती हैं। राष्ट्रपति को ना बुलाया जाना सविंधान का उल्लंघन है।