अयोध्या राम मंदिर के आंदोलन में 1990 का वर्ष काफी महत्वपूर्ण रहा है। इस साल पहली बार स्वतंत्र भारत में रामभक्तों का अपने अराध्य को लेकर आक्रोश भड़का। अयोध्या में जुटे देश भर के कारसेवकों ने रामलला की कारसेवा के जरिए रामभक्तों की मनोकांक्षाओं को एक अलग ही आकार दिया। भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना, आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद इस अभियान में जुटी थी। बिहार में लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी ने माहौल गरमाया। मुलायम के कारसेवकों के अयोध्या न पहुंचने देने के दावे ने उनके आक्रोश को भड़काया। हर हाल में 30 अक्टूबर को रामसेवकों के अयोध्या पहुंचने की कोशिश जारी रही। हालांकि, 40 हजार कारसेवकों में से केवल 10 हजार कारसेवक इस दिन अयोध्या पहुंच पाए थे। देश भर से निकले कारसेवकों का अयोध्या पहुंचना जारी था। 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवा हुई। कोठारी बंधुओं ने बाबरी मस्जिद पर भगवा फहरा कर मुलायम के दावों की हवा निकाल दी। लेकिन, कारसेवकों का हुजूम प्रभु रामलला की कारसेवा उस स्तर पर कर पाने में कामयाब नहीं हुआ। विश्व हिंदू परिषद नेता अशोक सिंघल घायल थे। महंत नृत्य गोपाल दास हर हाल में कारसेवा को जारी रखना चाहते थे। अयोध्या पहुंचे कारसेवक भी वापस लौटने को राजी नहीं थे।
रामलला विराजमान : 30 अक्टूबर 1990 को आखिर क्या हुआ था, उग्र हो गए थे कारसेवक
अयोध्या में 1 नवंबर को था ऐसा नजारा
30 अक्टूबर की कारसेवा में कई कारसेवकों को गोली लगी थी। उनकी मौत हो चुकी थी। ‘बच्चा- बच्चा राम का जन्मभूमि के काम का’ और ‘मंदिर वहीं बनाएंगे’ के नारों से अयोध्या नगरी गूंज रही थी। ऐसे में पहले रामभक्तों ने अपने साथियों की मौत का शोक मनाया। साथियों की लाश उठाई गई। उन्हें सरयू तट पर लाया गया। एक नवंबर 1990 को रामभक्तों की चिता की आग से सरयू भी तपी। वहीं, इन रामभक्तों की चिता की आग से निकलती चिंगारी ने रामभक्तों को आक्रोशित और आक्रोशित कर दिया। 30 अक्टूबर की कारसेवा में कितने कारसेवकों की मौत हुई, यह आज तक सामने नहीं आया है। सरकारी आंकड़ों में इन मौतों को प्रदर्शित ही नहीं किया गया। वहीं, हिंदू संगठनों की ओर से निहत्थे सैकड़ों कारसेवकों की गोली लगने से मौत का दावा किया जाता है।
फिर आई 2 नवंबर की तारीख
विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस की ओर से 2 नवंबर को एक बार फिर कारसेवा का ऐलान किया गया। इस ऐलान के बाद मुलायम सरकार ने सख्त आदेश जारी किए। 30 अक्टूबर की घटना से नाराज तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने किसी भी स्थिति में कारसेवकों को विवादित ढांचे तक न पहुंचने देने का आदेश दिया। किसी भी कारसेवक के विवादित ढांचे की तरफ जाने पर गोली मारने के आदेश थे। अयोध्या में तब तक कारसेवकों का जुटान हो चुका था। 2 नवंबर 1990 की सुबह कारसेवकों ने एकजुट होकर प्रभु रामलला की प्रार्थना की। जय श्रीराम के नारों से अयोध्या गूंज रही थी। इसके बाद कारसेवक बाबरी मस्जिद की तरफ बढ़े। सुरक्षाबल उन्हें आगे बढ़ने से रोकने की पूरी कोशिश में थे। सुरक्षाबलों की भारी तादाद को देखते हुए कारसेवकों ने अपनी रणनीति में बदलाव किया। वे सुरक्षाकर्मियों का पैर छूने लगे। इससे सुरक्षाकर्मी एक कदम पीछे हटते और कारसेवक एक कदम आगे। कारसेवकों का यह कुछ समय तक काम करता रहा। उनका जुलूस आगे बढ़ता रहा। इसके बाद पुलिस ने एक्शन शुरू किया। भीड़ को तितर- बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े गए। इसके बाद भी कारसेवक आगे बढ़ने की कोशिश करते रहे। पुलिस ने कारसेवकों पर लाठीचार्ज कर दिया। इसके बाद भी कारसेवकों का हुजूम पुलिस के भारी सुरक्षा घेरे को तोड़ने में कामयाब हो गई। मस्जिद को आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया गया।
अयोध्या की इस घटना की जानकारी मिलते ही मुलायम सरकार ने गोली चलाकर कारसेवकों को नियंत्रित करने के आदेश दिए। 30 नवंबर के 72 घंटे के भीतर अयोध्या में दूसरी बार गोली चली। गोलियों की आवाज से प्रभु श्रीराम की नगरी गूंज रही थी। कारसेवक इधर- उधर भाग रहे थे। उन पर लगातार गोली चल रही थी। हनुमानगढ़ी के आसपास की गलियां खून से लाल होती जा रही थी। पुलिस ने इस दिन कई कारसेवकों को मार गिराया। हिंदू संगठन मरने वाले कारसेवकों की संख्या हजारों में बताते हैं। हालांकि, सरकारी आंकड़ों में मरने वालों के कुछ ही नाम सामने आ पाए। बाबरी मस्जिद पर 30 अक्टूबर को भगवा ध्वज फहराने वाले कोठारी बंधुओं को एक घर से खींचकर सुरक्षाकर्मियों ने गोली मारी। इनके अलावा जोधपुर के सेठाराम माली, गंगानगर के रमेश कुमार, फैजाबाद महावीर प्रसाद, अयोध्या के रमेश पांडेय, मुजफ्फरपुर के संजय कुमार, जोधपुर के प्रो. महेंद्रनाथ अरोड़ा, राजेंद्र धारकर, बाबूलाल तिवारी और एक अनाम साधु के इस घटना में मारे जाने का रिकॉर्ड मिलता है। हिंदू संगठनों का दावा है कि पुलिस ने कई शवों का अज्ञात स्थानों पर दाह संस्कार कराया। वहीं, बड़ी संख्या में लाशों को बोरे में भरकर सरयू नदी में भी प्रवाहित करने का आरोप पुलिस पर है।
और यूपी सीएम हो गए मुल्ला मुलायम
2 नवंबर 1990 की घटना की यूपी समेत देश की राजनीति को झकझोड़ कर रख दिया। उस समय मीडिया में इस खबर को दबा दिया गया। कुछ स्थानीय और इंटरनेशनल मीडिया में इस घटना की खबरें आईं। कारसेवकों पर गोलीबारी की घटना ने यूपी के तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव को मुल्ला उपनाम दे दिया। यह उनके साथ ताउम्र जुड़ा रहा। 1991 के चुनाव में मुलायम को यूपी में हार का सामना करना पड़ा। कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी। इसके बाद मुलायम ने अयोध्या में गोली चलाने के आदेश को दर्दनाक, लेकिन जरूरी बताया। कोर्ट का आदेश आने तक शांति, कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उन्होंने अपनी कार्रवाई को उचित ठहराया। वहीं, हिंदू समुदाय ने 4 अप्रैल 1991 को दिल्ली के बोट क्लब में रामभक्त कारसेवकों के अस्थि कलश का प्रदर्शन किया। श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई। भारी भीड़ जुटी। लोगों ने प्रभु रामलीला के काम में गए कारसेवकों की मौत के मामले को लेकर देश भर में जागरूकता कार्यक्रम चलाया। इसके बाद रामभक्तों का आक्रोश भड़कने लगा।