मुंबई की श्रद्धा वालकर की हत्या ने अभी रिश्तों का पोस्टमार्टम शुरू ही किया था, कि दिल्ली की आयुषी यादव केस ने रिश्तों को तार तार कर दिया। कहावत पुरानी है कि बेटियों के हीरो उनके पिता होते हैं। लेकिन आयुषी यादव के पिता नितेश यादव उसकी हत्या का आरोपी है। वहीं दूसरी कहावत ये भी है कि अपने होने वाले पति में लड़की अपने पिता को ढूंढ़ती है तो इस भरोसे का कत्ल किया श्रद्धा के ब्वायफ्रेंड आफताब ने। इन दोनों घटनाओं में मौत लड़की की हुई है लेकिन कत्ल रिश्तों का हुआ है।
दिल्ली में आयुषी यादव को पिता ने मारी गोली, मथुरा में लाश फेंकी, अब खुल गया हर राज
श्रद्धा की हत्या भरोसे का कत्ल
दरअसल, श्रद्धा वालकर की हत्या सामान्य बात नहीं है। इस घटना के बाद हो रही राजनीति को छोड़ भी दें तो इस घटना ने कई जोड़ों में शंका के बीज डाल दिए हैं, जो कहीं किसी मोड़ पर श्रद्धा और आफताब से कनेक्ट हो सकते हैं। भले ही श्रद्धा और आफताब का मामला दूसरों के रिलेशनशिप से सीधा जुड़ा नहीं है। लेकिन रिश्तों में भरोसा ऐसी चीज है, जो इसकी बुनियाद हुई है। आफताब ने हत्या 29 साल के श्रद्धा की नहीं की है बल्कि उसने श्रद्धा के भरोसे का भी कत्ल कर दिया है। जो नजीर की तरह दूसरों के सामने भी पेश किया जा रहा है।
भरोसा और रिश्ता दोनों ही आयुषी के काल
अपनी जिंदगी में कोई भी लड़की शायद अपने पिता से सबसे ज्यादा अटैच होती है। पिता का प्यार उसे वो सुरक्षा देता है जो उसे शायद दुनिया में नहीं मिल पाती। श्रद्धा के पिता कह रहे हैं कि अगर आफताब से रिश्ता नहीं होता तो शायद उनकी बेटी जिंदा होती। लेकिन अब आयुषी यादव क्या कह सकती है? उसकी जान तो उसके पिता ने ही ली। उसकी लाश को बैग में भरकर दिल्ली से दूर मथुरा में फेंक दिया।
एक शहर, दो बेटियां, भयावह अंजाम
श्रद्धा वालकर और आयुषी यादव की हत्या दिल्ली में हुई है। इसी शहर में 29 साल की श्रद्धा और 21 साल की आयुषी को मौत के घाट उतार दिया गया। ये दोनों लड़कियां कहीं से एक दूसरे से जुड़ी नहीं हैं। लेकिन इनकी नियति ने इन्हें जोड़ दिया है। इन दोनों ने अभी अपने सपने बुनने ही शुरू ही किए थे कि दोनों के सपनों के साथ उनके भरोसे और रिश्ते को मार दिया गया। दोनों को अपनों ने ही मारा। एक को पिता ने, दूसरे को प्रेमी ने। श्रद्धा के टुकड़े उस प्रेमी ने कर दिए, जिसे उसने प्रेम के सपने दिखाए थे। तो आयुषी को तो उस पिता ने ही मार दिया, जिनकी गोद में किलकारियां भरती हुईं वो बच्ची से बड़ी हुई थी।