[Team insider] बिल्लियां किसी के लिए शौक है तो किसी के लिए अपशकुन। आज भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग मिल जायेंगे जो बिल्ली के रास्ता काट देने को अपशकुन मानते हुए ठहर जायेंगे, अपनी गाड़ी रोक देंगे। पीछे वाले किसी के आगे बढ़ने के बाद पीछे से जायेंगे। तो पश्चिम के कुछ देशों में बिल्लियों के रास्ता काटने को शकुन भी मानते हैं। अनेक ऐसे लोग भी मिल जायेंगे जो बिल्लियों को बड़े शौक से पालते हैं।
32 हजार रुपये खर्च कर विमान से बिल्लियों को लेकर आई रांची
बीते कोरोना काल की ही बात है। सीए और आईआईएम से मैनेजमेंट करने के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनी में बड़े पैकेज पर काम करने वाली रांची की वन्य वत्सल बेंगलुरू में अकेले लॉक डाउन में फंसी थी। किसी हादसे की शिकार दो बिल्लियां उसके हिस्से आईं। कोरोना काल में वे बिल्लियां ही दोस्त, मनोरंजन, उसके लिए पूरी दुनिया थी। रांची वापस लौटने लगी तो 32 हजार रुपये खर्च कर विमान से उन बिल्लियों को रांची लेकर आई। आज भी उसके पास हैं। वहीं बिल्लियों के अपशकुन के मिथक को तोड़ने के लिए पिछले साल पटना में कैट शो का भी आयोजन किया गया।
चूहों से बचाव के लिए बिल्लियां पालने का फैसला
खैर बात हो रही थी बिल्लियों को सरकार द्वारा हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की। जी हां बिहार सरकार इन्हें पालती थी। इनके खाने के लिए अनाज, वर्तन, बजट का प्रावधान था। दरअसल वह दौर कंप्यूटर में फाइलों को सहेजने का नहीं था। सब मैनुअल। और चूहों का आतंक सरकार को परेशान किये हुए था। जहां-तहां टेबुल और आलमीरों पर पड़ी कब कौन सी फाइल कुतर दे कहना कठिन था। तब सरकार ने चूहों से बचाव के लिए बिल्लियां पालने का फैसला किया था। करीब चालीस साल पहले तक राजस्व विभाग उनके लिए खाने आदि का इंतजाम करता था। भोजन के लिए कटोरे भी थे।
सरकार चूहों को मारने के लिए पालती है बिल्ली
चालीस के दशक में कोलकाता से निकलने वाले ‘दीवाना’ नामक समाचार पत्र में खबर छपी थी कि बिहार सरकार चूहों को मारने के लिए बिल्ली पालती है। उसके लिए छह आना मासिक का प्रावधान किया गया है। यह मासिक प्रति बिल्ली भोजन के लिए था या उसकी निगरानी करने वाले के लिए यह स्पष्ट नहीं है। हाल के दशक तक पटना के मुख्य सचिवालय यानी ओल्ड सेक्रेटेरियट में बिल्लियां घूमती हुए दिखती थीं। एक कमरे से दूसरे कमरे और गलियारे में। मगर उनके खाने की व्यवस्था नहीं थी। सचिवालय के बाबुओं की टिफिन और चूहे उनका आसरा थे। समय के साथ बिल्लियों के रखरखाव का बजट कब बंद हुआ कोई बताने वाला नहीं। अब तो फाइलों की जगह भी कंप्यूटर ने ले लिया है।