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बिहार में शराबबंदी की सफलता हमारे नैतिक और सामाजिक मूल्य पर निर्भर है!

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बिहार में शराबबंदी की सफलता हमारे नैतिक और सामाजिक मूल्य पर निर्भर है!

Insider Live by Insider Live
December 27, 2021
in Insider Special
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Bihar Sharab Bandi
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InsiderLive: बिहार में 5 अप्रैल 2016 को पूर्ण शराबबंदी लागू हुयी। लेकिन पूर्ण शराबबंदी होने के बाद भी इसकी तस्करी नहीं थम रही है। और शराब पीने की वजह से लगभग सभी जिलों से मौत की खबरें सामने आ रही है। सिर्फ दो दिनों में राज्य के दो जिलों बेतिया और गोपालगंज में जहरीली शराब पीने से करीब 33 लोगों ने अपनी जान गवायीं है। वही अगर बात करें पिछले ग्यारह महीने की तो अब तक यह आंकड़ा 100 के करीब पहुँच चूका है। प्रदेश में हो रही ऐसी घटना ने राजनीति को गरमा दिया है।
फिर से जान लेने लगी है जाम


बिहार में एक बार फिर अवैध रूप से चल रहे शराब के कारोबार ने शराबबंदी के कानून और नियम पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। शराबबंदी के बावजूद बिहार में यह कारोबार अपना पांव पसारता जा रहा है, भले ही यह काम चोरी छुपे सही, जान की छति तो पहुंचा रहा है। प्रशासन द्वारा जांच से पता चलता है कि इसमें पड़ोसी राज्यों से अवैध शराब का कारोबार की भूमिका अहम है साथ ही लोग चोरी से शराब बना कर बेचते और पीते हैं।
पारंपरिक सामाजिक निषेध-भाव हुआ है कमजोर
अगर हम बात करें शराब के चलन की तो इसका कारोबार पिछले कुछ सालों में देश के लगभग सभी हिस्सों में बढ़ा है। जिस भी राज्य में शराब की बिक्री पर पाबंदी नहीं है, वहां के आंकड़ों की बात करें तो यहाँ हर महीने पीने वालों की संख्या में इजाफा होता है। और नए ठेकों के लाइसेंस राज्य सरकारें बाँटती है। इसका असर सीधे तौर पर शराबबंदी वाले राज्यों में पड़ता है और अवैध शराब की बिक्री की शंका हमेशा बनी रहती है। शराब माफिया ऐसे राज्यों में अपने कारोबार को बढ़ाना शुरू कर देते हैं। पिछले कुछ सालों में देश भर में शराब पीना फैशन का रूप ले लिया है और इससे पारंपरिक सामाजिक निषेध-भाव लगातार कमजोर पड़ता जा रहा है।
चोरी-छुपे बनने वाले शराबों की गुणवत्ता को जांचने का कोई पैमाना नहीं होता है। इसके निर्माण में घातक रसायन भी डाले जाते हैं, जो नशा तो खूब करता है, पर शरीर को गंभीर खतरे में भी डाल देता है और अमूमन जान गवानी पड़ती है। कोई ऐसा राज्य नही है जहाँ से लोगों के जहरीली शराब पीने की वजह से जान गंवाने की खबरें न आती हो। सरकार इस तरह से शराब बनाने और बेचने वालों पर अंकुश लगाने में विफल साबित हो रही है। अवैध शराब-कारोबारियों के बारे में पता लगाना प्रशासन के लिए कठिन काम नहीं है। लेकिन यह कारोबार कहीं न कहीं पुलिस-प्रशासन की सांठगांठ से चलता है। शराबबंदी को सिर्फ कानून मान लिया जाय और इसको केवल सिद्धांत के तौर पर चलाने से लक्ष्य की प्राप्ति होना संभव नहीं होगा। इसके लिए प्रशासन को जवाबदेह बनना जरूरी है।
जन-समर्थन के साथ-साथ नैतिकता और जिम्मेवारी की भी है दरकार
नितीश कुमार ने 2015 की विधानसभा के चुनावी दौरों में बिहार की जनता खास कर महिलाओं से जो वादा किया था उसको 5 अप्रैल 2016 को पूर्ण शराबबंदी करके अमलीजामा पहना दिया। हालांकि इससे पर्यटन और होटल उद्योग से जुड़े लोग का विरोध भी नितीश सरकार को खूब झेलना पड़ा। लेकिन इस बात से भी इंकार नही किया जा सकता है कि शराबबंदी को जबरदस्त जन-समर्थन मिला।
बहरहाल, यह समर्थन सिर्फ दिखावा ही साबित हो रहा है इसका व्यवाहरिक पक्ष मुद्दा आज भी सरकार के लिए और समाज के लिए गौण है। मुद्दा प्रशासन के व्यवहार का भी है। प्रशासन के भरोसे समाज सुधार के निर्णयों को लागू करने में शायद ही कभी किसी सरकार को सफलता मिली हो। प्रशासन से जुड़े अधिकांश लोग स्वयं शराबखोरी से ग्रस्त हैं। और इस प्रकार के गैरकानूनी गोरखधंधों को चलने देने में उनका स्वार्थ भी निहित होता है।
नीतीश कुमार फिर से इस कार्य में सिविल सोसायटी और सेल्फ हेल्प ग्रुपों की मदद से जागरूकता जगाने की कवायद को तेज करने की बात कर रहे हैं, शायद यह कदम अधिक कारगर साबित हो लेकिन अब तक तो ऐसा हुआ नहीं है। अतीत में कई राज्यों ने शराबबंदी के प्रयोग किये और इसमें नाकाम हुए। अब सरकार को उनकी विफलताओं से सीख लेकर अपने नये क़दमों को बढ़ाने के बारे में विचार करना चाहिए अगर सरकार निश्चित तौर पर शराबबंदी की सफलता चाहती है तो।
शराबबंदी सिर्फ कानून के तौर पर सफल नही हो सकती
शराबबंदी में निराशा हाथ लगी हो, ऐसा अकेला राज्य सिर्फ बिहार नही है। हरियाणा, आंध्रप्रदेश और मिजोरम में भी शराबबंदी उतनी कारगर साबित नही हुयी है। और इन राज्यों में फिर से शराब की बिक्री होती है। अगर हम बात करें गुजरात, नागालैंड, लक्ष्यद्वीप के अलावा मणिपुर के कुछ हिस्सों की तो यहाँ पर शराब की बिक्री पर पाबंदी है। राज्य की सरकार को इन राज्यों के नियम और कानूनों से सीखने की जरूरत है, जो काफी तो नही लेकिन कुछ हद तक कारगर साबित हो सकती है।
गांधीजी मानते थे कि ‘शराब सभी पापों का जननी है।’ शराब, शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आर्थिक दृष्टि से मनुष्य को बर्बाद कर देती है। मनुष्य दुराचारी बन जाता है। हम सभी यह जानते हैं की शराब हमारे देश में घरेलु हिंसा, सड़क दुर्घटना और लीवर तथा किडनी सम्बंधित बिमारियों की सबसे बड़ी वजह है। शराब गृहस्थियां बर्बाद कर देती है। शराब युवा को अकाल मृत्यु की ओर अग्रसर करता है। शराब मस्तिष्क के संचार तंत्र को धीमा कर दुर्घटनाओं का कारण बनती है। और धीरे-धीरे मनुष्य कि सोचने कि शक्ति को ख़त्म कर देती है। शराब एक मनोसक्रिय ड्रग है। इसकी रोकथाम के लिए अगर सरकार तत्पर है तो हमारा भी नैतिक और सामाजिक फर्ज है कि इस प्रयास को सफल बनाने में अपनी भूमिका का निर्धारण करें। इस प्रयास में पुलिस को तेज और चौकन्ना होना पड़ेगा। साथ-साथ वे जनता जो इस मुहीम को सफल बनाना चाहते हैं उन्हें सक्रीय हो कर सरकार को सहयोग देना पड़ेगा। निश्चित तौर पर सफलता जरूर मिलेगी।

Story By: Abhishek Bajpayee

Tags: BiharNitish KumarSharab Bandi




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